यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत श्लोक
हिंदू धर्म का दिव्य ग्रंथ भगवद गीता न केवल आत्मज्ञान का स्रोत है, बल्कि यह जीवन के प्रत्येक मोड़ पर मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसके श्लोकों में छुपा हुआ गहन तत्वज्ञान व्यक्ति को धर्म, कर्तव्य और कर्म की दिशा दिखाता है। इन्हीं में से एक है श्लोक "यदा यदा हि धर्मस्य" (अध्याय 4, श्लोक 7), जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के रण में अर्जुन को उपदेश रूप में कहा था। यह श्लोक केवल धार्मिक भावना नहीं, बल्कि समाज में धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश का शाश्वत सत्य है। आइए समझते हैं इसके गहरे अर्थ और इसकी आज के जीवन में प्रासंगिकता।
श्लोक
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽअत्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
हिंदी अनुवाद
जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का प्रकोप बढ़ता है, तब-तब मैं स्वयं इस पृथ्वी पर प्रकट होता हूँ।
सत्कर्मियों की रक्षा करने, दुष्टों का विनाश करने और धर्म की पुनर्स्थापना करने के लिए मैं प्रत्येक युग में अवतार ग्रहण करता हूँ।
श्लोक की व्याख्या
भगवान श्री कृष्ण ने इस श्लोक में यह बताया है कि जब भी धरती पर धर्म की हानि होती है और अधर्म का प्रकोप बढ़ता है, तब भगवान स्वयं इस संसार में अवतार लेते हैं। इसका मतलब यह है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए समय-समय पर पृथ्वी पर आते हैं।
यह श्लोक जीवन में आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। इसमें यह संदेश है कि ईश्वर कभी भी अपने भक्तों को अकेला नहीं छोड़ते और समय-समय पर सही मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन देते हैं।
इस श्लोक का गहरा अर्थ यह भी है कि धर्म की विजय होती है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विकट क्यों न हों। चाहे बुराई कितनी भी बढ़ जाए, अंत में अच्छाई की ही जीत होती है। भगवान श्री कृष्ण का यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि धर्म और सत्य हमेशा विजयी होते हैं।
आधुनिक समय में प्रासंगिकता
आज के समय में जब दुनिया में अधर्म, भ्रष्टाचार और अन्याय का बोलबाला है, तब इस श्लोक का महत्व और भी बढ़ जाता है। "Yada Yada Hi Dharmasya" हमें यह सिखाता है कि ईश्वर हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं। जब दुनिया में अराजकता और संकट आते हैं, तो भगवान इस धरती पर अवतार लेते हैं और धर्म की पुनर्स्थापना करते हैं।
इस श्लोक का आधुनिक जीवन में बहुत बड़ा महत्व है क्योंकि आज भी जब हम जीवन में किसी कठिनाई से गुजरते हैं, तो हमें इस बात का विश्वास रखना चाहिए कि ईश्वर हमेशा हमारे साथ हैं और वह हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।
इस श्लोक से हम क्या सीखते हैं?
- धर्म का पालन करें : इस श्लोक से यह सिखने को मिलता है कि हमें हमेशा धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।
- संकट के समय धैर्य रखें : जब भी जीवन में कोई संकट आए, हमें विश्वास रखना चाहिए कि ईश्वर हमें सही मार्ग दिखाएंगे।
- अच्छाई की जीत होती है : श्लोक यह भी बताता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, धर्म और अच्छाई की ही जीत होती है।
- आध्यात्मिक विश्वास : इस श्लोक से हमें यह सीखने को मिलता है कि जीवन में आध्यात्मिक विश्वास और ईश्वर में आस्था रखना जरूरी है।
भगवद गीता का "Yada Yada Hi Dharmasya" श्लोक हमें यह संदेश देता है कि हमें धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए और किसी भी प्रकार के संकट में ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए। यह श्लोक सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि जीवन की एक महत्वपूर्ण शिक्षा भी देता है, जो हमें अपने जीवन को सही दिशा में चलाने के लिए प्रेरित करता है। जब भी हम परेशान होते हैं, इस श्लोक को याद करें और जानें कि धर्म और सत्य की हमेशा जीत होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. भगवद गीता का 'यदा यदा हि धर्मस्य' श्लोक किस अध्याय में है?
यह श्लोक भगवद गीता के अध्याय 4 (ज्ञान योग), श्लोक संख्या 7 में आता है।
2. ‘यदा यदा हि धर्मस्य’ का क्या अर्थ है?
इसका अर्थ है कि जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब भगवान स्वयं अवतार लेते हैं।
3. इस श्लोक का आज के युग में क्या महत्व है?
आज के समय में यह श्लोक हमें सिखाता है कि सत्य और धर्म की हमेशा विजय होती है, और जब अन्याय बढ़ता है, तब ईश्वर स्वयं हस्तक्षेप करते हैं।
4. क्या 'यदा यदा हि धर्मस्य' श्लोक भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था?
हाँ, यह श्लोक भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को महाभारत युद्ध के समय कुरुक्षेत्र में उपदेश देते समय कहा था।
5. क्या यह श्लोक केवल धार्मिक अर्थ में सीमित है?
नहीं, यह श्लोक न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में भी प्रासंगिक है। यह हमें अन्याय के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देता है।
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